दीया हूँ मै

बहुत जला हूँ मैं ,
तभी तो तुम देख पाए..
वो राह ,
जिस पर चलकर..
पायी मन्जिल तुमने |
जीता दिलों को तुमने ||
तेल मेरा था,
और बाती भी मेरी..
और तपन  !!!!!
वो भी मैंने ही  तो सही..
लेकिन पथ पर तुम चले |
वो भी बिना तपे, बिना जले ||
जाओ पथिक ,
जाओ तुम अब ..
आगे चलोगे तो मिलेंगें,
और भी दीये मुझ जैसे ..
जो पूरे करेंगें तुम्हारी चाह |
दिखाएंगें तुम्हें आगे की राह ||
यहाँ रहकर ,
लड़कर पवन झकोरों से .
अभी तो ,
और जलना है मुझे ..
सदा से ऐसे ही जीया हूँ मैं |
क्योंकि दीया हूँ मैं ……….
             -जयकुमार

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