बहुत जला हूँ मैं ,
तभी
तो तुम
देख पाए..
वो
राह ,
जिस पर
चलकर..
पायी
मन्जिल
तुमने |
जीता
दिलों
को तुमने
||
तेल
मेरा था,
और
बाती भी
मेरी..
और
तपन !!!!!
वो
भी मैंने
ही तो
सही..
लेकिन
पथ पर
तुम चले
|
वो
भी बिना
तपे, बिना
जले ||
जाओ
पथिक ,
जाओ
तुम अब
..
आगे
चलोगे
तो मिलेंगें,
और
भी दीये
मुझ जैसे
..
जो
पूरे करेंगें
तुम्हारी
चाह |
दिखाएंगें
तुम्हें
आगे की
राह ||
यहाँ
रहकर ,
लड़कर
पवन झकोरों
से .
अभी
तो ,
और
जलना है
मुझे ..
सदा
से ऐसे
ही जीया
हूँ मैं
|
क्योंकि
दीया हूँ
मैं ……….