मन मेरा

   मन मेरा

क्यूँ है मन मेरा ?
व्याकुल सा, उदास सा..
संवेदनाएं सभी क्षीण सी,
क्यूँ नही होती मुझे ?
जीने की चाह..
क्यूँ मुझ पर लिपटा है ?
निर्जीवता का लिबास सा..
क्यूँ है मन मेरा ?
व्याकुल सा उदास सा..
आज भी सागर में,
उठती हैं लहरें,
उड़ते हैं रूपसियों के आँचल भी.
पर,
उठती लहरें, उड़ते आँचल,
क्यूँ लगते हैं मुझे ?
परिहास सा…
क्यूँ है मन मेरा ?
व्याकुल सा उदास सा..
गातीं हैं कोयल भी,
गुजरता भी हूँ मैं,
पेड़ों के घने साये से होकर.
लेकिन,
मुझे होता भी नही,
वहाँ से गुजरती हुई,
महकती हवाओं का अहसास सा.
क्यूँ है मन मेरा ?
व्याकुल सा उदास सा..
नीले नभ में विचरतें हैं,
चंचल पक्षी,
मन में लिए आकाश की ऊचाईयां,
छू लेने की लगन,
फिर क्यूँ नही होता मुझमे भी?
स्वछन्द विचरण करने की,
इच्छा का विकास सा..
क्यूँ है मन मेरा ?
व्याकुल सा उदास सा..
चमकते हैं तारे भी रात में,
और सूरज दिन में…
फिर न जाने,
क्यूँ होता है मुझे?
हर तरफ अँधेरे का आभास सा.
क्यूँ है मन मेरा ?
व्याकुल सा उदास सा..
हर तरफ खुशियों का उल्लास सा,
फिर भी क्यूँ है ??
मन मेरा,
व्याकुल सा उदास सा..

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